रुड़की।आज पूरे उत्तराखंड में लोकपर्व फूलदेई की धूम है।वहीं विधानसभा सत्र के लिए ग़ैरसैंण पहुँचे रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा ने बच्चों के बीच त्योहार मनाया।उन्होंने बच्चों को तोहफ़े,मिठाई आदि भेट की।
आपको बता दें बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण फूलदेई को लोक बालपर्व भी कहा जाता है। चैत्र मास की प्रथम तिथि को फूलदेई पर्व मनाया जाता है। देवभूमि में हर पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। उसी तरह से अपनी संस्कृति से जोड़े रखने वाले फूलदेई पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है। खास कर छोटे बच्चे इस पर्व को लेकर उत्साहित रहते हैं क्योंकि यह एक तरह से बच्चों का ही त्यौहार है। उत्तराखंड में ऋतुओं के अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं। जो यहां की संस्कृति को उजागर करते हैं साथ ही पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए हैं।
फूलदेई त्योहार को फुलारी, फूल सक्रांति भी कहते हैं, यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इन दिनों पहाड़ों में जंगली फूलों की भी बहार रहती है। चारों ओर छाई हरियाली और कई प्रकार के खिले फूल प्रकृति की खूबसूरती में चार-चांद लगाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने से ही नववर्ष होता है। नववर्ष के स्वागत के लिए कई तरह के फूल खिलते हैं। उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार फूलदेई मनाया जाता है।
चैत्र के महीने में फुलारी पर्व के अवसर पर छोटे-छोटे बच्चे सूर्योदय के साथ ही घर-घर की देहली पर रंग-बिरंगे फूल को बिखेरते घर की खुशहाली, सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं। जिसके बाद घर के लोग बच्चों की डलिया में गुड़, चावल और पैसे डालते हैं। यह पर्व पर्वतीय परंपरा में बेटियों की पूजा, समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन एक मुख्य प्रकार का व्यंजन सयेई भी पकाया जाता है। फूलों का यह पर्व कहीं पूरे चैत्र मास तक चलता है तो कहीं आठ दिनों तक।
पर्व के बारे में मान्यता है कि फ्योंली नामक एक वनकन्या थी। वो जंगल मे रहती थी। जंगल के सभी लोग उसके दोस्त थे। उसकी वजह जंगल मे हरियाली और समृद्धि थी। एक दिन एक देश का राजकुमार उस जंगल मे आया। उसे फ्योंली से प्रेम हो गया और उससे शादी करके अपने देश ले गया।
फ्योंली को अपने ससुराल में मायके की याद आने लगी, अपने जंगल के मित्रों की याद आने लगी। उधर जंगल में फ्योंली बिना पेड़ पौधें मुरझाने लगे, जंगली जानवर उदास रहने लगे। उधर फ्योंली की सास उसे बहुत परेशान करती थी। फ्योंली कि सास उसे मायके जाने नहीं देती थी।
फ्योंली अपनी सास से और अपने पति से उसे मायके भेजने की प्रार्थना करती थी। मगर उसके ससुराल वालों ने उसे नही भेजा। फ्योंली मायके की याद में तड़पते लगी। मायके की याद में तड़पकर एक दिन फ्योंली मर जाती है। उसके ससुराल वाले राजकुमारी को उसके मायके के पास ही दफना देते हैं। जिस जगह पर राजकुमारी को दफनाया गया था वहां पर कुछ दिनों के बाद ही पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है जिसे फ्योंली नाम दिया जाता है।